मसखरा मशहूर है , आँसू बहाने के लिए बांटता है वो हंसी, सारे ज़माने के लिए ! घाव सबको मत दिखाओ, लोग …
View More ” मुस्कराने के लिए “Category: Uncategorized
” आशा का दीपक “
यह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है थक कर बैठे गये क्या भाई मंजिल दूर नहीं है चिंगारी बन गयी लहू…
View More ” आशा का दीपक ““क्षण भर को क्यों प्यार किया था ? “
क्षण भर को क्यों प्यार किया था ? अर्ध रात्रि में सहसा उठकर , पलक संपुटो में मदिरा भर तुमने क्यों मेरे चरणों में…
View More “क्षण भर को क्यों प्यार किया था ? “” प्रेम का मिलन “
मैं नदी हूँ, उसको दरिया बनना था, मेरे प्रेम का उसको ज़रिया बनना था , वो मेरे प्रेम का बांध बन गया, बांध नहीं बना …
View More ” प्रेम का मिलन “” ओ मतवाले ऐसे बरसो “
ओ मतवाले ऐसे बरसो धरती का यौवन मुसकाये सरस–सरस बूंदों से उतरो तरुवर खड़े बाँह फैलाये ! सावन में प्लावंन बन आये इतनी आतुरता न …
View More ” ओ मतवाले ऐसे बरसो “” झर गये पात “
झर गये पात बिसर गई टहनी करूण कथा जग से क्या कहनी ? नव कोंपल के आते–आते टूट गये सब के सब नाते राम …
View More ” झर गये पात “” हमारे हाथ “
अलसुबह नींद से जागने से रात को सोने तक कितनी चीजें गुजरती हैं हाथों से होकर पता नहीं क्या — क्या करते हैं हाथ पता …
View More ” हमारे हाथ “” हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा ” हास्य कवि रमई काका की रचना के कुछ अंश “
हम गयन याक दिन लखनौवे, कक्कू संजोग अइस परिगा, पहिलेहे पहिल हम सहरु दीख, सो , कहूँ– कहूँ ध्वाखा होइगा ! जब गयें नुमायिस् द्याखे…
View More ” हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा ” हास्य कवि रमई काका की रचना के कुछ अंश “जल संरक्षण को लेकर बुद्धिजीवियों की गोष्ठी संपन्न
जल संरक्षण को लेकर बुद्धिजीवियों की गोष्ठी संपन्न गिरते जल स्तर पर जताई चिंता । सोनभद्र।जीवन की बेतहाशा बढ़ती भाग दौड़ में व्यक्तिगत मुद्दों की…
View More जल संरक्षण को लेकर बुद्धिजीवियों की गोष्ठी संपन्न” काँटे सहते सहते हम गुलाब हो गये “
हमने डाले बीज प्यार के , उसने काँटे बोये, उन काँटों से लिपट लिपट कर हम रात रात भर रोये दुनिया भर के दर्दों का …
View More ” काँटे सहते सहते हम गुलाब हो गये “