धरती का यौवन मुसकाये
सरस–सरस बूंदों से उतरो
तरुवर खड़े बाँह फैलाये !
सावन में प्लावंन बन आये
इतनी आतुरता न दिखाओ !
रूक—रूक कर छक–छक कर पीने दो
धीरे—धीरे रस बरसाओ !
ओ रस वाले ऐसे बरसो
जैसे प्रियतम की सुधि आये !
—- कवि डॉ लक्ष्मीशंकर मिश्र ” निशंक ”
( संकलित )
राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !