” रात सुनती रही मैं सुनाता रहा “

रात   सुनती  रही  मैं  सुनाता  रहा

दर्द  की  दास्तां   मैं  बताता   रहा   !

 

लोग  लौगों  से  चाहत  निभाते   रहे

एक  वो  था  मेरा  दिल   दुखाता  रहा   !

 

धूप  और  छाँव  सी  उसकी  तबियत   रही

मुझको ,   ख़ुद  से  हमेशा   बचाता      रहा     !

 

दिल  के  मेहमान  खाने   में  रौनक   रही   ,

कोई  आता  रहा  ,   कोई   जाता     रहा    !

 

मैंने  ना  जाने   कैसे   सबक   पढ़   लिए

याद  करता  रहा  और  भुलाता    रहा    !

 

——–  राम कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार   !

 

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