दर्द की दास्तां मैं बताता रहा !
लोग लौगों से चाहत निभाते रहे
एक वो था मेरा दिल दुखाता रहा !
धूप और छाँव सी उसकी तबियत रही
मुझको , ख़ुद से हमेशा बचाता रहा !
दिल के मेहमान खाने में रौनक रही ,
कोई आता रहा , कोई जाता रहा !
मैंने ना जाने कैसे सबक पढ़ लिए
याद करता रहा और भुलाता रहा !
——– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !