मैं नदी हूँ, उसको दरिया बनना था,
मेरे प्रेम का उसको ज़रिया बनना था ,
वो मेरे प्रेम का बांध बन गया,
बांध नहीं बना , प्रेम मिलन में बाधा बन गया !
अब मैं रुका सा रहता हूँ, कहीं दूर उससे,
भ्रमित– सा रहता हूँ, कई बार स्वयं से
यह बांध खुलेगा भी या नहीं ,
नदी को दरिया मिलेगा भी या नहीं !
कोई ऐसी बरसात हो जाए,
प्रेम रूपी नदी इतना उमड़े कि बांध खुलने को लाचार हो जाए,
और नदी और दरिया का प्रेम मिलन साकार हो जाए !
( संकलित )
राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !