” हमारे हाथ “

अलसुबह

नींद से जागने से

रात को सोने तक

कितनी  चीजें

गुजरती  हैं  हाथों  से  होकर

पता  नहीं

क्या — क्या  करते  हैं  हाथ

पता  नहीं

कुछ  भी  नहीं  रहता  टिका

हाथों  के  हाथ

घिस  जाती  हैं

झूठी  पड़  जाती  हैं

हस्तरेखायें   भी

वक़्त   गये

फिर  भी  पाले  रहते  हैं  हम

भ्रम

सब   हैं  हमारे  साथ

सब  कुछ  है

हमारे   हाथ    !!

———- कवि   नवनीत  पांडे

( संकलित  )

राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार  !