” हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा ” हास्य कवि रमई काका की रचना के कुछ अंश “

हम  गयन याक दिन  लखनौवे, कक्कू संजोग अइस परिगा,

पहिलेहे पहिल हम सहरु दीख, सो  , कहूँ– कहूँ  ध्वाखा होइगा  !

जब गयें नुमायिस् द्याखे हम, जहॉ कक्कू  भारी रहै भीर

दुई तोला चारि रुपैया कै, हम बेसहा सोने कै जंजीर

लखि भई घरैतिन गलगल बहु, मुलु चार दिनन मां रंग बदला

उन कहा कि पितरि  लै आयो, हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा  !

 

हम गयन अमीनाबादै जब,  कुछ कपड़ा लेय बजाजा मा

माटी कै सुघर मेहरिया असि, जह खड़ी रहै दरवाज़ा मा

समझा दुकान कै यह मलकींन, सो भाव ताव पूछें लागेंन्

याकै बोले यह मूरति है, हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा  !

 

धंसी गयन दुकाँनै  दीख जहाँ, मेहरेऊ याकै रहैं खड़ी

मुँह पौडर पोते उजर–उजर,  औ पहिरे सारी सुघर  बड़ी

हम जाना  मूरति माटी कै, सो सारी पर जब हाथ धरा

उई झझकि भकुरि खौख्वाय उठीं  , हम कहा फिरिव् ध्वाखा होइगा  !

————– प्रसिद्ध कवि– नाटककार   रमई  काका

( संकलित  )

राम कुमार  दीक्षित,  पत्रकार  !