” झर गये पात “

झर  गये  पात

बिसर  गई  टहनी

करूण  कथा जग  से  क्या  कहनी  ?

 

नव  कोंपल  के  आते–आते

टूट  गये  सब  के  सब  नाते

राम  करे  इस  नव  पल्लव  को

पड़े  नहीं यह  पीड़ा  सहनी

 

झर  गये  पात

बिसर  गयी  टहनी

करूण  कथा  जग  से  क्या  कहनी  ?

 

कहीं  रंग  है, कहीं  राग  है

कहीं  चंग  है, कहीं  फ़ाग  है

और  धूसरित  पात  नाथ  को

टुक– टुक  देखे  शाख  विरहनी

 

झर  गये  पात

बिसर  गयी  टहनी

करूण   कथा  जग  से  क्या  कहनी  ?

 

पावन  पाश  में  पड़े  पात  ये

जनम–मरण  में  रहे  साथ  ये

” वृंदावन ”  की शलभ  बाहों  में

समा गई  ऋतु  की  ” मृगनयनी ”

 

झर  गये  पात

बिसर  गई  टहनी

करूण  कथा  जग  से  क्या  कहनी  ?

———— बाल  कवि  बैरागी

( संकलित  )

राम कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार  !