” अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए “

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए

जिस में इंसान को इंसान  बनाया  जाए   !

 

जिस की खुशबू से महक जाए पड़ोसी का भी घर

फूल इस किस्म का हर जगह खिलाया  जाए   !

 

आग  बहती  है  यहाँ  गंगा में झेलम में भी

कोई बतलाए  कहाँ जा के  नहाया  जाए  !

 

मेरे दुख— दर्द  का  तुझ पर हो असर कुछ ऐसा

मैं रहूँ भूखा तो  तुझसे  भी  न  खाया   जाये   !

 

जिस्म  दो  हो के  भी दिल  एक  हों  अपने ऐसे

मेरा  आँसू  तेरी  पलकों  से  उठाया   जाए    !

——-  प्रसिद्ध कवि  गोपालदास  नीरज

( संकलित  )

 

——-  राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार   !

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *