” कभी पाबंदियों से छूट के भी… “

कभी पाबंदियों से छूट के भी दम घुटने लगता है दरो– दीवार हो जिनमें वही जिंदा नहीं  होता   !   हमारा ये तज़ुर्बा है कि…

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