” स्वर कोकिला लता मंगेशकर के लिए लिखी गई कविता “

ये गुलशन में बाद— ए– सबा  गा रही है के पर्वत पे काली  घटा गा   रही   है ये झरनों  ने  पैदा  किया    है   …

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” कभी पाबंदियों से छूट के भी… “

कभी पाबंदियों से छूट के भी दम घुटने लगता है दरो– दीवार हो जिनमें वही जिंदा नहीं  होता   !   हमारा ये तज़ुर्बा है कि…

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