” दीवानों की हस्ती “

हम दीवानों की क्या हस्ती ,

हैं आज यहाँ , कल वहाँ चले ,

मस्ती का आलम साथ चला ,

हम धूल उड़ाते जहाँ चले !

आये बनकर उल्लास अभी,

आँसू बनकर बह चले अभी ,

सब कहते ही रह गए , अरे,

तुम कैसे आये, कहाँ चले ?

दो बात कही , दो बात सुनी,

कुछ हँसे और फिर कुछ रोये !

छककर सुख– दुख के घूँटों को

हम एक भाव से पिये चले !

किस ओर चले , यह मत पूंछो

चलना है, बस इसलिए चले !

जग से उसका कुछ लिए चले ,

जग को अपना कुछ दिये चले !

अब अपना और पराया क्या ,

आबाद रहें रुकने वाले !

हम स्वयं बंधे थे और स्वयं ,

हम अपने बंधन तोड़ चले !

—– प्रसिद्ध कवि भगवती चरण वर्मा

( संकलित )

—- राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !

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