तुम्हारे भीगे तौलिये से अपना बदन पोंछना ,
तुम्हारा स्पर्श पा लेने जैसा है ,
ज़िंदगी के तमाम उतार-चढ़ावो के बीच ये मेरे रोज का
एक हिस्सा है !
तुम्हारे खा चुकने के बाद ,
थाली में बचे हुए जरा से अन्न का निवाला ,
चाव से खाना ,
जैसे तुम्हारे हाथों का कौर ही हो ,
मेरे लिए प्रेम यही तो है !
साँझ ढले तुम्हारे काम से लौट आने के बाद ,
तुम्हारी कमीज़ से आती हुई पसीने की गंध को ,
धुलने से पहले ,
अपने सीने से लगाना ,
यह गंध मेरे लिए हरसिंगार के फूलों की गंध सी होती है !
मैं अभ्यस्त हूँ इन तमाम कामों की ,
जैसे रोज सूरज के उगने की…..
मैं बेहद करीब हूँ, तुम्हारे पसीने की गंध वाली कमीज़ के,
बेहद करीब हूँ मैं , तुम्हारे भीगे तौलिये के स्पर्श के !
तुम्हारी घड़ी और मोजे संभाल कर ,
रोज उन्हें ठीक जगह पर रख देना ,
मेरे लिए प्रेम कर लेना है !
—– रचनाकार अंकिता शाम्भवी
( संकलित )
—- राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !