चापल्य नहीं उन्माद नहीं
सूना — सूना सा जीवन है
कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं
तव स्वागत हित हिलता रहता
अंतरवीणा का तार प्रिये —
इच्छाएं मुझको लूट चुकीं
आशाएँ मुझसे छूट चुकीं
सुख की सुन्दर– सुंदर लड़ियाँ
मेरे हाथों से टूट चुकीं
खो बैठा अपने हाथों ही
मैं अपना कोष अपार प्रिये
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये !!
—— प्रसिद्ध कवि दुष्यंत कुमार
( संकलित )
—- राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !