” तेरे लिए सब छोड़ के भी तेरा न रहा मैं “

तेरे  लिए  सब  छोड़  के  भी  , तेरा  न  रहा  मैं  ,

दुनिया  भी  गई  इश्क़  में,  तुझसे  भी  गया  मैं   !

 

एक  सोच  में  गुम  हूँ  , तेरी  दीवार  से  लगकर  ,

मंज़िल  पे  पहुँच  कर  भी  , ठिकाने  न  लगा  मैं    !

 

इस  दर्जा  मुझे  खोखला  कर  रखा  था  गम  ने  ,

लगता  था  गया  अब  के  गया  , अब  के  गया  मैं   !

 

एक  धोखे  में  दुनिया  में  मेरी  राय  तलब  की  ,

कहते  थे  कि  पत्थर  हूँ  ,  मगर  बोल   पड़ा  मैं   !

 

———–  राम  कुमार  दीक्षित  ,   पत्रकार     !

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