देश में आत्महत्या के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं ! लोग बहुत जल्दी विचलित, क्रोधित, बेचैन हो रहे हैं ! ये धीमी आत्महत्या है ! प्रतिक्रिया और क्रोध धीरे– धीरे स्वभाव बन रहा है ! लोग बात — बात पर गुस्सा हो जाते हैं ! हर बात की क्रोध में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं ! कोई भी सहन नहीं करना चाहता ! अगर आपको लगता है कि यह विचार आपके भीतर उतर रहा है, तो तीन प्रयोग करिये !
पहला प्रयोग — कोई न कोई भजन रोज सुनिये और गुनगुनाइये ! दूसरा प्रयोग — पुराने सिनेमा के गाने सुनिये ! पहले गाने ऐसे बनते थे, जिन्हें कानों से सुनते थे और जो हृदय में उतरते थे ! अब जो गीत बनते हैं , वो आँखों से ज्यादा देखे जाते हैं ! पहले के गीत ताज़गी देते थे ! अब के गीत थकान देते हैं ! और तीसरा प्रयोग, यह करिये कि अपने घर के या आपके आसपास के बच्चों से ज़रूर बात कीजिये और हो सके तो उनके साथ थोड़ा खेलिए ! बच्चों के साथ बात करते हुए या खेलते हुए बिल्कुल बच्चे हो जाइये ! ये तीन काम आपको इतना भावनात्मक बना देंगे कि आप किसी भी तरह के नकारात्मक विचारों का इलाज़ खुद ही ढूँढ लेंगे और आप अपने आपको हमेशा तरोताज़ा महसूस करेंगे !
——– राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे, महारास्ट्र !