कोने में बैठकर क्यों रोता है ,
यूँ चुप चुप सा क्यों रहता है !
आगे बढ़ने से क्यों डरता है ,
सपनों को बुनने से क्यों डरता है !
तकदीर को क्यों रोता है ,
मेहनत से क्यों डरता है !
झूठे लोगों से क्यों डरता है ,
कुछ खोने के डर से क्यों बैठा है !
हाथ नहीं होते जिनके नसीब होते हैं उनके भी,
तू मुट्ठी में बंद लकीरों को लेकर को लेकर रोता है !
सूरज भी करता है नित नई शुरुआत ,
सांझ होने के भय से नहीं डरता है !
किसने तुमको रोका है ,
तुम्हीं ने तुम को रोका है !
भर साहस और दम बढ़ा कदम ,
अब इससे अच्छा न कोई मौका है !!
( संकलित )
—– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !