सोलह संस्कारों में से एक है विवाह ! अब विवाह का उत्सव चौथी इंडस्ट्री बन गया है ! संस्कार उद्योग में बदल गया है ! चूंकि जब दृष्टिकोण व्यावसायिक होता है तो मूल उद्देश्य खो जाता है ! व्यवसाय का झुकाव भोग– विलास, सुख– सुविधा, साधन– संपन्नता इसी में होता है ! इसलिए विवाह के पीछे जो संस्कार था , उसको लोग धीरे– धीरे भूलते जा रहे हैं !
हम लोग श्री राम जी का महोत्सव खूब धूम धाम से मना रहे हैं तो क्यों न संस्कारों को याद किया जाए ! विवाह के सात वचन अपनी जगह पर हैं लेकिन इस समय विवाह का सबसे अच्छा परिणाम होना चाहिए अर्थात श्रेष्ठ संतानों का जन्म होना ! संतानों के जीवम में भी शान्ति उतरना ! बच्चों के जीवन में समृद्धि लाना ! माता– पिता बच्चों को जन्म तो दे देते हैं ! उनको जीवन की भौतिक सफलताएं भी देते हैं ! लेकिन बच्चों के जीवन में जो अशांति और बेचैनी आती है ! उसके लिए कोई प्रयास नहीं करते हैं ! माता– पिता का परम दायित्व है कि वह बच्चों पर पूर्ण ध्यान देते रहें और उनको उनके जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए मार्ग– दर्शन देते रहें ! विवाह तभी सफल माना जाता है जब उनके बच्चे देश के एक समृद्ध नागरिक बनें ! बच्चें अपना विकास तो करें ही, साथ ही अपने भारत देश के विकास में अग्रणी बनें , तभी विवाह का परम लक्ष्य पूर्ण होगा !
——- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे, महारास्ट्र !