स्वामी रामकृष्ण परमहंस काशीपुर के आश्रम में ठहरे हुए थे ! वह कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे ! कलकत्ता के सुविख्यात चिकित्सक डॉक्टर सरकार उन्हें देखने आये ! स्वामी जी के शरीर के परीक्षण के बाद वह उनके चरणों में बैठ गए और बोले , महाराज, असीमित धन तथा भौतिक सुख— सुविधाएं उपलब्ध होने के बावजूद आंतरिक सुख– शान्ति नहीं मिल रही है ! इसके लिए क्या करना चाहिए ?
स्वामी जी मुस्कराए तथा बोले, ” डॉक्टर रोगियों से धन कमाते हैं ” ! उन्हें अपनी आय का ज्यादा से ज्यादा अंश रोगियों की निःशुल्क सेवा में लगाना चाहिए !
गरीब रोगियों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए ! कुछ क्षण मौन रहने के बाद स्वामी जी ने कहा, ” यदि तुम प्रतिदिन कुछ गरीब रोगियों को भगवान् का रूप मानकर उन्हें निःशुल्क दवा दोगे, उनकी सेवा करोगे तो देखोगे कि तुम्हें स्वतः आनंद की अनुभूति होने लगेगी !
डॉक्टर सरकार एक सप्ताह बाद पुनः स्वामी जी के दर्शनों के लिए आये तो उन्होंने कहा , महाराज , आपके दिये गुरुमंत्र से मुझे अनूठा आनंद मिलने लगा है ! अब मैं अपनी दिनभर की कमाई का आधा हिस्सा गरीबों व असहायों की सेवा सहायता में लगाने लगा हूँ और इससे अनूठे आनंद में डूब जाता हूँ ! इससे हमें भी यही सीख मिलती है कि जहाँ तक संभव हो , अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीबों और ज़रूरतमंदों की सेवा और सहायता अवश्य ही करनी चाहिए , तभी हमारा मानव जीवन सार्थक होगा !
——— राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे !