कहते हैं, सोशल मीडिया में सक्रिय हर दूसरा व्यक्ति कवि है ! सोशल मीडिया से बाहर भी साहित्य की दुनिया में करीब करीब यही हाल है ! हर साहित्यकार अपने साहित्य साधना की शुरुवात अमूमन कविताओं से करता है लेकिन कवियों के भरमार वाले इस देश में बॉलीवुड एक ऐसा बंद दरवाजा है , जहाँ कुछ अपनी वजहों और कुछ अपनी सीमाओं के चलते तथा कुछ साज़िश के तहत इसका दरवाजा बंद कर लेने के कारण, यहाँ हमेशा महज़ मुट्ठीभर गीतकारों का दबदबा कायम रहा है ! ऐसा नहीं है कि देश के कोने कोने से बॉलीवुड की फिल्मों में गीत लिखने की हसरत लेकर यहाँ कवि आते नहीं हैं ! लेकिन यह हैरान करने वाली प्रवृत्ति है कि बॉलीवुड में जो मुट्ठीभर गीतकार सक्रिय रहते हैं ! वे मिलकर इस दुनिया के दरवाज़ों को बाहरी गीतकारों के लिए इतनी जोर से बंद रखते हैं कि वे तमाम कोशिशों के बावजूद बॉलीवुड के अंदर नहीं जा पाते हैं !
यही वजह है कि बॉलीवुड में गीतों की फसल महज़ कुछ मुट्ठीभर गीतकारों के हिस्से ही आती है ! साहिर, शैलेंद्र और हसरत जयपुरी के ज़माने में भी बहुत मुश्किल से इस दुनिया में आनंद बक्शी, अंज़ान् और वर्मा मलिक जैसे गीतकारों की एंट्री हो पायी थी ! जैसे इन दिनों गुलज़ार, ज़ावेद अख्तर, विशाल ददलानी, इरशाद कामिल, अमिताभ भट्टाचार्य आदि जैसे गीतकार बने हुए हैं ! यही कारण है कि जिस देश में लाखों लाख कवि हों , हज़ारों हजार गीतबद्ध कविताएँ लिखी जाती हों, उस देश में कई लाख करोड़ वाली फिल्म इंडस्ट्री में ढंग के 20 गीतकार भी नहीं हैं क्यों कि पहले से जमे गीतकार नये गीतकारों को यहाँ घुसने ही नहीं देते ! बड़ी मुश्किल से कोई एकाध घुस पाता है !
यही जमे हुए गीतकार एक एक गीत के लिए 10 लाख से लेकर 20 लाख तक रुपये लेते हैं ! यह बात भी सच है कि अगर बॉलीवुड के दरवाज़े सबके लिए आसानी से खुले हों तो दर्ज़नो नहीं बल्कि सैकड़ों ऐसे दूसरे गीतकार भी सामने आयेंगे जो इनसे बढ़िया गीत लिख सकते हैं ! लेकिन बॉलीवुड इंडस्ट्री का काला सच यही है कि इस सोशल मीडिया के दौर में भी फिल्म इंडस्ट्री में महज़ मुट्ठीभर गीतकारों का कब्ज़ा है !
———– राम कुमार दीक्षित, पत्रकार , पुणे !