बहने रोली लेकर आईं !
सजी हुई थाली हाथों में ,
अधरों पर मुस्काने !
मस्तक चंदन तिलक लगाकर ,
गाए प्रेम तराने !
भाई– बहन का प्यार अमर है ,
सारा जग ये जाने !
देने शत्– शत् बार दुआएं ,
बहने रोली लेकर आईं !
जाति– धर्म से दूर पर्व यह ,
बस अपनापन झलके !
हर हृदयंतर की गगरी से ,
ममता का रस छलके !
प्रीत डोर से बंधते ऐसे ,
बंधन अद्भुत बल के !
लेकर नैनों में आशाएँ ,
बहने रोली लेकर आईं !
जीवन की हर कठिन डगर पर ,
साथ कहीं ना छूटे !
जग सागर में नाव भाई की ,
नहीं कभी भी टूटे !
पतझड़ ना हो मन उपवन में ,
नित सुख — अंकुर फूटे !
हरदम दूर रहें विपदाएँ ,
बहने रोली लेकर आईं !
——– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !