तुम आती हो
नव अंगों का
शाश्वत मधु—- विभव लुटाती हो
तुम आती हो !
बजते निःस्वर नूपुर छम— छम ,
साँसों में थमता स्पंदन— क्रम ,
तुम आती हो ,
अंतस्थल में
शोभा ज्वाला लिपटाती हो !
अपलक रह जाते मनोनयन
कह पाते मर्म– कथा न वचन,
तुम आती हो
तंद्रील मन में
स्वप्नों के मुकुल खिलाती हो !!
—— प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत
( संकलित )
——– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !