” रात सुनती रही मैं सुनाता रहा “

रात   सुनती  रही  मैं  सुनाता  रहा दर्द  की  दास्तां   मैं  बताता   रहा   !   लोग  लौगों  से  चाहत  निभाते   रहे एक  वो  था  मेरा  दिल …

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” हर बार गिरता हूँ, संभालता हूँ “

पता है, चलने में  हर  बार गिरता  हूँ  , संभालता  हूँ  , मगर  मंज़िल को  पाने  के  लिए  चलता  ही रहता हूँ  !   कभी…

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” कितना अच्छा होता है “

कितना अच्छा  होता  है एक— दूसरे  को  बिना  जाने पास— पास  होना और उस  संगीत  को  सुनना जो  धमनियों  में  बजता  है  , उन  रंगों …

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” वक़्त तुमने मुझे यूँ झुका तो लिया “

वक़्त  तुमने  मुझे  यूँ  झुका  तो  लिया हौसलों  को  मेरे  न  डिगा    पाओगे  !! पंख  काटे  हैं  तुमने  बेशक   मेरे  , पर  गगन  को …

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” हो गई है पीर पर्वत — सी पिघलनी चाहिए “

हो  गई  है  पीर  पर्वत  सी  पिघलनी  चाहिए   , इस  हिमालय  से  कोई  गंगा  निकलनी  चाहिए  !   आज  यह  दीवार  परदों  की  तरह  हिलने …

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” साथी , साँझ लगी अब होने “

फैलाया  था   जिन्हें  गगन  में  , विस्तृत  वसुधा  के  कण् — कण्  में  , उन किरणों के अस्ताचल  पर पहुँच लगा है सूर्य संजोने साथी …

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” पथ भूल न जाना पथिक कहीं “

जीवन  के  कुसुमित  उपवन  में गुंजित  मधुमय  कण् —  कण्  होगा शैशव  के  कुछ  सपने  होंगे मदमाता– सा   यौवन  होगा   यौवन  की  उच्छंखलता   में…

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