” मुझे पुकार लो “

ज़मीन है न बोलती

न आसमान बोलता ,

जहान देखकर मुझे ,

नहीं ज़बान खोलता ,

नहीं जगह कहीं जहाँ

न अजनबी गिना गया ,

कहाँ– कहाँ न फिर चुका

दिमाग– दिल टटोलता ,

कहाँ मनुष्य है कि जो

उम्मीद छोड़कर जिया ,

इसीलिए अडा रहा ,

कि तुम मुझे पुकार लो

इसीलिए खड़ा रहा ,

कि तुम मुझे पुकार लो !!

( संकलित )

— राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !

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