ऐसी कोई लहर नहीं जो गिरती उठती न हो
तूफानों से उलझ सुलझकर आगे बढ़ती न हो !
कुछ लोग सो गए हैं रातों की बाहों में
चट्टानों सी खड़ी मुसीबत जीवन की राहों में !
ऐसी कोई निशा नहीं जो रोकर कटती न हो
तूफानों से उलझ सुलझकर आगे बढ़ती न हो !
क़ाली रातें कभी कभी अंधियारे में घेरें ,
तभी पुरानी यादें आकर अन्दर से टेरें !
ऐसी कोई दिशा नहीं जो झकझोरती न हो ,
तूफानों से उलझ सुलझकर आगे बढ़ती न हो !
—— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !