जो टल गई , सो टल गई !
किसने रखी है, उम्र बांधकर ,
जो ढल गई , सो ढल गई !
मौत से कब, जीती है जिंदगी ,
जो छल गई , सो छल गई !
न बची क्रोध– अग्नि में ये काया ,
जो जल गई , सो जल गई !
कब मिटी हैं , मस्तक की लकीरें
जो डल गयीं , सो डल गयीं !
हर सीप में , मोती कहाँ होता ,
जो फल गई , सो फल गई !
कह दी ज़ुबाँ ने बात पर ,
जो खल गई , सो खल गई !
( संकलित )
——- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार , पुणे , महारास्ट्र !