” वक़्त तुमने मुझे यूँ झुका तो लिया “

वक़्त  तुमने  मुझे  यूँ  झुका  तो  लिया हौसलों  को  मेरे  न  डिगा    पाओगे  !! पंख  काटे  हैं  तुमने  बेशक   मेरे  , पर  गगन  को …

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” हो गई है पीर पर्वत — सी पिघलनी चाहिए “

हो  गई  है  पीर  पर्वत  सी  पिघलनी  चाहिए   , इस  हिमालय  से  कोई  गंगा  निकलनी  चाहिए  !   आज  यह  दीवार  परदों  की  तरह  हिलने …

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” साथी , साँझ लगी अब होने “

फैलाया  था   जिन्हें  गगन  में  , विस्तृत  वसुधा  के  कण् — कण्  में  , उन किरणों के अस्ताचल  पर पहुँच लगा है सूर्य संजोने साथी …

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” पथ भूल न जाना पथिक कहीं “

जीवन  के  कुसुमित  उपवन  में गुंजित  मधुमय  कण् —  कण्  होगा शैशव  के  कुछ  सपने  होंगे मदमाता– सा   यौवन  होगा   यौवन  की  उच्छंखलता   में…

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” कलम आज उनकी जय बोल “

जला  अस्थियां   बारी  बारी चिटकाई  जिनमें  चिंगारी जो  चढ़  गये  पुण्य  वेदी  पर लिए  बिना  गर्दन  का  मोल कलम  आज  उनकी  जय  बोल   !  …

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” हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते “

हाथ  छूटे  भी  तो  रिश्ते  नहीं  छोड़ा  करते वक़्त  की  शाख  से  लम्हे  नहीं  तोडा  करते   !   जिस  की  आवाज़  में  सिलवट हो  निगाहों …

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“जिंदगी यूँ हुई बसर तन्हा .. “

जिंदगी  यूँ  हुई  बसर  तन्हा  , काफिला  साथ  और  सफ़र  तन्हा  !   अपने  साये  से  चौँक   जाते  हैं उम्र  गुजरी  है  इस  क़दर   तन्हा …

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