ना खोने का ही कुछ गम है !
ये दौलत और शोहरत सिर्फ ,
कुछ ज़ख़्मों का मरहम है !
अजब सी कशमकश है ,
रोज़ जीने, रोज़ मरने में !
मुकम्मल ज़िंदगी तो है ,
मगर पूरी से कुछ कम है !
— प्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास
( संकलित )
—-/ राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !