परमार्थी को अपने को देखते रहना चाहिए कि हम कहीं जीवात्मा के शत्रुओं के घेरे में तो नहीं आ रहे हैं
जोधपुर, राजस्थान बाबा उमाकान्त जी महाराज ने सितंबर 2025 के सतसंग में कहा कि परमार्थी को अपने को देखते रहना चाहिए कि हम कहीं शत्रुओं के घेरे में तो नहीं आ रहे हैं। शत्रु किसे कहते हैं? जैसे कहते हो कि यह हमें मार डालेगा, यह हमारा विरोधी है, हम से ईर्ष्या करता है, हमें नीचा दिखाना चाहता है; यह हमारा शत्रु है। लेकिन वह किसका शत्रु है?
शरीर का शत्रु है। वह शरीर को नीचा दिखाना चाहता है, शरीर को खत्म कर देना चाहता है, शरीर से ईर्ष्या करता है, शरीर से जुड़ी हुई चीजों; जैसे धन-संपति या आपको जो पद मिला हुआ है उससे ईर्ष्या करता है। कुछ शत्रु ऐसे हैं जो जीवात्मा के शत्रु हैं। वे मन को आदि बना देते हैं और अपना मन ही साधना में विकास के लिए सबसे बड़ा शत्रु हो जाता है। अब वे शत्रु कौन हैं?
वे हैं; काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, वैमनस्यता। ये सब इंसान के शत्रु हैं। कहते हैं जैसे शत्रु को मार कर भगाते हैं कि खतरा टल जाए, ऐसे ही इनको मार कर भगाना चाहिए।
ये शत्रु छुपे रहते हैं और मौका पा कर के हमला करते हैं
कुछ शत्रु ऐसे होते हैं जो छुप जाते हैं। जंगलों में, घास में छुप जाते हैं, पहाड़ की कंदराओं में छुप जाते हैं और अवसर पाते ही हमला करते हैं। ऐसे ही इस शरीर के अंदर में जो शत्रु हैं (काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, वैमनस्यता) वे जगह बना लेते हैं। तो बड़ी बारीकी से इनको देखना चाहिए क्योंकि ये कभी भी हमला कर सकते हैं। कहा जाता है ना कि रोग की शुरुआत जैसे ही हो उसी समय इलाज करा लेना चाहिए, दवा ले लेनी चाहिए नहीं तो वह मर्ज पड़ा रहता है, और जब उसको अनुकूल वातावरण मिलता है तो वही उभर कर के आ जाता है। जैसे किसी को चोट लग गई और हड्डी तक वह दर्द पहुंच गया तो तुरंत सिकाई करनी चाहिए, इलाज करना चाहिए।
अगर नहीं किया तो उस वक्त पर तो आप मल्हम लगा दोगे, गोली खा लोगे, आराम मिल जाएगा लेकिन कुछ दिन के बाद जब पुरवा हवा (पूर्व की हवा) चलेगी तब वह दर्द करेगा; बुढ़ापे में दर्द करता है। तो जिस तरह से वह छुपा रहता है ऐसे ही ये शत्रु भी छुपे रहते हैं और मौका पा कर के हमला करते हैं।