पितरों को जल देने की संपूर्ण विधि

मातृ पितृ चरण कमलेभ्यो नम:

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1. तैयारी

स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।

घर के आँगन, पीपल के नीचे, नदी, तालाब या कुएँ के पास जल चढ़ाना श्रेष्ठ माना गया है।

एक पात्र में स्वच्छ जल लें। उसमें काला तिल, अक्षत (चावल), पुष्प, दूर्वा और कुशा डालें।

2. आसन और दिशा

कुश का आसन बिछाकर बैठे।

मुख दक्षिण दिशा की ओर रखें (क्योंकि पितृलोक दक्षिण दिशा में माना जाता है)।

3. संकल्प

अपने गोत्र, नाम, पिता और पूर्वजों के नाम स्मरण करके संकल्प करें—
“मैं अमुक गोत्र का अमुक नाम, अपने पितृ, पितामह, प्रपितामह आदि समस्त पितरों को तर्पण अर्पित करता हूँ।”

4. तर्पण विधि

दाहिने हाथ में कुश की अंगूठी बनाकर जल लें।

अंजलि (दोनों हाथ मिलाकर) बनाकर जल को धीरे-धीरे छोड़ें।

हर बार जल छोड़ते हुए यह मंत्र बोलें—
“ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः”
(तीन बार करें – पिता, पितामह, प्रपितामह के लिए)।

5. विशेष मंत्र (यदि कर सकें)

पिता के लिए:
“ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः”

पितामह के लिए:
“ॐ पितामहेभ्यः स्वधा नमः”

प्रपितामह के लिए:
“ॐ प्रपितामहेभ्यः स्वधा नमः”

(इसी प्रकार मातृपक्ष के लिए भी किया जा सकता है – मातामह, प्रपितामह आदि।)

6. समापन

तर्पण के बाद पितरों को प्रणाम करें और प्रार्थना करें—
“हे पितरों! इस जल और तिल से तृप्त होकर हमें आशीर्वाद दें।”

अंत में भूमि पर पुष्प या अक्षत छोड़ दें और भोजन में ब्राह्मण/पक्षी/गाय को अर्पित करना श्रेष्ठ है।

✅ महत्व – इससे पितरों की आत्मा तृप्त होती है, वे आशीर्वाद देते हैं, और परिवार में सुख-शांति, आयु, स्वास्थ्य तथा संतति की वृद्धि होती है।

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