बन अचल हिमवान रे मन !
हो बनी गंभीर रजनी ,
सूझती हो न अवनी ,
ढल न अस्ताचल अतल में ,
बन सुवर्ण विहान रे मन !
उठ रही हो सिंधु लहरी ,
हो न मिलती थाह गहरी ,
नील नीराधि का अकेला ,
बन सुभग जलयान रे मन !
कमल कलियाँ संकुचित हो ,
रश्मियाँ भी बिछलती हो ,
तू तुषार गुहा गहन में ,
बन मधुप की तान रे मन !
—– प्रसिद्ध कवि सोहन लाल द्विवेदी
( संकलित )
—– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !