” चलते समय “

तुम मुझे पूँछते हो, जाऊँ ?

मैं क्या जवाब दूँ , तुम्हीं कहो !

” जा.. कहते रुकती है जबान,

किस मुँह सी तुमसे कहूँ रहो !!

सेवा करना था जहाँ मुझे ,

कुछ भक्ति– भाव दरसाना था !

उन कृपा — कटाक्षों का बदला ,

बलि होकर जहाँ चुकाना था !!

मैं सदा रुठती ही आई ,

प्रिय, तुम्हें न मैंने पहचाना !

वह मान बाण सा चुभता है ,

अब देख तुम्हारा यह जाना !!

—- प्रसिद्ध कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान

( संकलित )

—- राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !

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