” अहसास होने दीजिये “

पहले  इश्क़  को  राख  होने  दीजिये  ,

फ़िर  दिल  को  राख  होने   दीजिये  !

तब  जा  कर  पनपेगी   मुहब्बत  ,

जो  भी  हो , बेहिसाब   होने   दीजिये   !!

 

सज़ाएँ  मुकर्रर  करना  इत्मिनान   से  ,

मगर  पहले  गुनाह  होने   दीजिये   !

मैं  भूला  नहीं  , बस  थोड़ा  थक   गया  था  ,

लौट  आऊंगा  घर  ,  शाम  होने   दीजिये  !!

 

चाँद  के  दीदार  की  चाहत  दिन  में  जगी  है  ,

आयेगा  वो  दर  भी  ,  रात  होने   दीजिये   !

जो  सरिताएँ  सूख  गई   हैं  ,  इंतज़ार    में   ,

वो  भी  भरेंगी  ,  बस  बरसात   होने   दीजिये   !

 

नासमझ  , पागल  , आवारा  , लापरवाह  है  जो  ,

संभल   जायेंगे  वो  भी  , बस  अहसास  होने  दीजिये   !!

(  संकलित  )

 

——-  राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार   !

 

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