” मौन “

बैठ  लें  कुछ  देर,

आओ  ,  एक  पथ  के  पथिक– से

प्रिय, अंत  और  अनंत  के  ,

तम— गहन— जीवन  घेर   !

मौन  मधु  हो  जाए

भाषा  मूकता  की  आड   में  ,

मन  सरलता  की  बाढ़  में  ,

जल— बिन्दु  सा  बह  जाए   !

सरल  अति  स्वच्छंद

जीवन  , प्रात  के  लघुपात   से  ,

उत्थान — पतनाघात  से

रह  जाए  चुप  , निर्द्वंद्   !!

———–   प्रसिद्ध कवि  सूर्यकांत त्रिपाठी  निराला

(  संकलित  )

 

———-   राम  कुमार  दीक्षित  ,   पत्रकार   !

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