हो गई है पीर पर्वत– सी पिघलनी चाहिए ,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए !
आज यह दीवार , परदों की तरह हिलने लगी ,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए !
हर सड़क पर, हर गली में , हर नगर , हर गांव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए !
सिर्फ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नहीं ,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए !
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही ,
हो कहीं भी आग , लेकिन आग जलनी चाहिए !
——– प्रसिद्ध कवि दुष्यंत कुमार
( संकलित )
————– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !