” छूना है आसमान को “

ज़मीन  पर पैर रखकर,

जाना है बुलंदियों पे  ,

नींव ज़मी से बनाकर  ,

उड़ना है  आसमान में   !

जुनून के  पंख और,

जज़्बे की उडान के साथ,

न थकना है, न रुकना है  ,

न टूटना है, न झुकना है  !

अब बस आगे बढ़ना है,

पाना है मज़िल को,

जीना है ख्वाबों को,

छूना है आसमान को  !!

( संकलित  )

राम कुमार दीक्षित, पत्रकार  !