मुख्यमंत्री ने अयोध्या में श्रीमद्जगद्गुरू रामानन्दाचार्य पूज्य
स्वामी हर्याचार्य जी महाराज की 17वीं पुण्यतिथि कार्यक्रम को सम्बोधित किया
अयोध्या में 500 वर्षों के इन्तजार के उपरान्त भव्य श्रीराम मन्दिर का
निर्माण हुआ, इस पूरे आन्दोलन की नींव वह पूज्य संत हैं, जिन्होंने हर हाल
में अयोध्या में श्रीराम मन्दिर निर्माण को अपना ध्येय बनाया : मुख्यमंत्री
सभी संत अपने देश, धर्म व मान बिन्दुओं के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित रहे
स्वामी हर्याचार्य जी महाराज में मूल्यों व आदर्शां के लिए जूझने का सामर्थ्य था
जो महत्व राष्ट्रीय जीवन में राष्ट्रीय प्रतीकों का,
वही महत्व धार्मिक जीवन में आस्था के प्रतीकों का है
राष्ट्रीय प्रतीकों का प्रत्येक सनातन धर्मावलम्बी को सम्मान करना चाहिए
कर्ता द्वारा किये गये किसी भी उपकार के
प्रति धन्यवाद ज्ञापित करना ही सनातन धर्म की पहचान
लखनऊ : 12 सितम्बर, 2025 :ः उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि अयोध्या में 500 वर्षों के इन्तजार के उपरान्त भव्य श्रीराम मन्दिर का निर्माण हुआ है। सम-विषम परिस्थितियों में एक लम्बे संघर्ष के बाद सनातन धर्मावलम्बियों ने विजय प्राप्त की है। यह बहुत बड़ा कार्य है। इस पूरे आन्दोलन की नींव वह पूज्य संत हैं, जिन्होंने अपनी परवाह नहीं की और देश, काल एवं परिस्थिति की सीमाओं का अतिक्रमण कर हर हाल में अयोध्या में श्रीराम मन्दिर के निर्माण को अपना ध्येय बनाया। पूज्य सतों की साधना का परिणाम आज अयोध्या में भव्य श्रीराम मन्दिर के निर्माण के रूप में देखने को मिल रहा है।
मुख्यमंत्री जी आज जनपद अयोध्या स्थित दिगम्बर अखाड़ा में श्रीमद्जगद्गुरू रामानन्दाचार्य पूज्य स्वामी हर्याचार्य जी महाराज की 17वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने स्वामी हर्याचार्य जी महाराज की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर अपनी श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि पूज्य संतों की परम्परा में हमें पूज्य जगद्गुरू रामानन्दाचार्य स्वामी हर्याचार्य जी महाराज का सान्निध्य एक लम्बे समय तक हमें प्राप्त हुआ था। जगद्गुरु रामानन्दाचार्य की इस पावन परम्परा को उनके शिष्य पूज्य जगद्गुरू रामानन्दाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य जी महाराज निरन्तर उसी भाव से आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री जी ने श्रीमद्जगद्गुरू रामानन्दाचार्य पूज्य स्वामी हर्याचार्य जी महाराज की स्मृतियों को नमन करते हुए कहा कि वह एक विद्वान सन्त थे। उनमें मूल्यों व आदर्शां के लिए जूझने का सामर्थ्य था। उनके मन में श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर के लिए एक जज्बा था। जगद्गुरू जैसे प्रतिष्ठित पद पर विराजमान होने के बावजूद वह अत्यन्त सहज व सरल थे और बिना किसी परवाह के सनातन धर्म की एकता के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहे।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि सभी पूज्य संतों के संकल्प व साधना की परिणति भव्य श्रीराम मन्दिर के निर्माण के रूप हुई है। आज उन सन्तों की आत्मा को असीम शांति मिल रही होगी। यह संकल्प उन संतों की साधना की परिणति के रूप में मूर्त रूप ले पाया है। मान-अपमान, शासन-प्रशासन की परवाह किए बिना किसी भी आडम्बर से दूर सभी सन्त प्रत्येक परिस्थिति में संघर्ष के जज्बे के साथ आगे बढ़ते रहे।
मुख्यमंत्री जी ने श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन से जुड़े सभी संतजन का स्मरण करते हुए कहा कि सभी सन्तजन की अन्तिम इच्छा अयोध्या में भव्य श्रीराम मन्दिर निर्माण की थी। सभी संत अपने देश, धर्म व मान बिन्दुओं के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित रहे। अयोध्या, काशी, मथुरा जैसे पूज्य धर्मस्थल, जिन्हें गुलामी के काल में बर्बर शासकों ने अपनी आक्रान्त निगाहों से अपवित्र किया था, उनकी पुनर्प्रतिष्ठा ही हमारे पूज्य संतों की इच्छा थी।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि अविरल-निर्मल गंगा जी तथा यमुना जी के दर्शन हर भारतीय को हो सकें, हमारी नदी परम्परा फिर से पुनर्जीवित होकर पावन धरा को फिर से सोना उगलने वाली धरती के रूप में बदलकर देश को सोने की चिड़िया बना दे, हर सनातन धर्मावलम्बी के घर में नित्य गायत्री वन्दना और गो-सेवा हो, यह प्रत्येक सनातन धर्मावलम्बी का संकल्प बनना चाहिए। जो महत्व राष्ट्रीय जीवन में राष्ट्रीय प्रतीकों का है, वही महत्व धार्मिक जीवन में आस्था के प्रतीकों का है। जिस प्रकार धार्मिक प्रतीकों व मान बिन्दुओं का सम्मान होता है, उसी प्रकार से राष्ट्रीय प्रतीकों का भी प्रत्येक सनातन धर्मावलम्बी को सम्मान करना चाहिए। प्रत्येक घर पर तिरंगा फहराना चाहिए। भारत के प्रत्येक नागरिक के मन में भारतीय संविधान के प्रति सम्मान का भाव होना चाहिए। महापुरूषों व भारत की सेना के प्रति सभी के मन में श्रद्धा भाव होना चाहिए।
मुख्यमंत्री जी ने एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि जब हनुमान जी लंका जाते हैं, तब मेनाग पर्वत उनसे आराम करने के लिए कहता है। हनुमान जी मेनाग पर्वत से कहते हैं कि ‘रामकाज कीन्हे बिना, मोहि कहां विश्राम’। मेनाग पर्वत हनुमान जी से सनातन धर्म की परिभाषा पूछता है। हनुमान जी कहते हैं कि ‘कृते च प्रतिकर्तव्यं, एष धर्मः सनातनः’ अर्थात् कर्ता द्वारा किये गये किसी भी उपकार के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करना ही सनातन धर्म है। यही हमारी पहचान है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि आज हम गाय की पूजा इसलिए करते हैं, क्योंकि यह सनातन धर्म की प्रतीक है। हम गंगा की पूजा इसलिए करते हैं, क्योंकि जल ही जीवन है और नदी संस्कृति से ही हमारी सनातन संस्कृति पनपी है। प्रभु श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण, भगवान विश्वनाथ, मां गंगा, मां यमुना, मां सरयू की पूजा हम इसीलिए करते हैं, क्योंकि ये सभी हमारे प्रतीक हैं। जीवन के रहस्य को सनातन धर्मावलम्बी से बढ़कर कोई नहीं समझ सका है। हमने स्वर्ग को तुच्छ माना है। स्वर्ग से भी ऊपर मोक्ष है। ‘छीरणे पूर्णे मृत्युलोके वसन्ति’। एक संन्यासी केवल अपनी व्यक्तिगत मोक्ष की आकांक्षा के साथ कार्य नहीं करता। उन्होंने धर्म को केवल मोक्ष प्राप्ति का साधन नहीं माना है। उनकी मान्यता है कि जीवन में सांसारिक उत्कर्ष व पुरूषार्थ के लक्ष्य को प्राप्त करने के पश्चात उन्हें स्वतः मोक्ष मिल जाएगा। यह केवल एक सनातन धर्मावलम्बी ही कह सकता है। यही भाव हमारे पूज्य संतों का था, जिसके साथ जुड़ने के लिए हम उपस्थित हुए हैं।
इस अवसर पर कृषि मंत्री श्री सूर्य प्रताप शाही, अयोध्या के महापौर श्री गिरीशपति त्रिपाठी तथा अन्य जनप्रतिनिधि गण, दशरथ गद्दी के पूज्य महंत श्री देवेन्द्र प्रसादाचार्य जी महाराज, बल्लभकुंज के महंत श्री राजकुमार दास जी महाराज, बुन्देलखण्ड से पधारे महंत अर्पित दास जी महाराज एवं अन्य संत गण उपस्थित थे।