” उत्तर नहीं हूँ “

उत्तर नहीं हूँ

मैं प्रश्न हूँ तुम्हारा ही !

नये– नये शब्दों में तुमने

जो पूछा है बार बार

पर जिस पर सब के सब निरुत्तर हैं

प्रश्न हूँ तुम्हारा ही !

या

फूल की तरह मुझको बहा नहीं दिया

प्रश्न की तरह मुझको रह– रह दोहराया है

नयी– नयी स्थितियों में मुझको तराशा है

सहज बनाया है

गहरा बनाया है

प्रश्न की तरह मुझको अर्पित कर डाला है

सबके प्रति

दान हूँ तुम्हारा मैं

जिसको तुमने अपनी अंजलि से बांधा नहीं

दे डाला !

उत्तर नहीं हूँ

मैं प्रश्न हूँ तुम्हारा ही !!

—- प्रसिद्ध साहित्यकार धर्मवीर भारती

( संकलित )

— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !

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