” जीना अपने ही में “

जीना  अपने  ही  में… एक  महान  कर्म  है  ,

जीने  का  सदुपयोग… यह  मनुज  धर्म  है   !

अपने  ही  में  रहना…. एक  प्रबुद्ध   कला  है  ,

जग  के  हित  रहने  में… सबका  सहज  भला  है  !

जग  का  प्यार  मिले… जन्मों  के  पुण्य  चाहिए  ,

जग  जीवन  को… प्रेम— सिंधु  में  डूब  चाहिए   !

ज्ञानी  बनकर… मत  नीरस   उपदेश  दीजिये  ,

लोक  कर्म  भव  सत्य… प्रथम  सत्कर्म    कीजिये   !

——  प्रसिद्ध कवि  सुमित्रानंदन  पंत

( संकलित  )

 

——-  राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार   !

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