जिंदगानी का कोई मक़सद नहीं है ,
एक भी क़द आज आदमक़द् नहीं है !
राम जाने किस जगह होंगे कबूतर ,
इस इमारत में कोई गुंबद नहीं है !
आप से मिलकर हमें अक्सर लगा है ,
हुस्न में अब जज्ब– ए– अमज़द नहीं है !
पेड़—- पौधे हैं बहुत बौने तुम्हारे ,
रास्तों में एक भी बरगद नहीं है !
इस चमन को देखकर किसने कहा था ,
एक पंछी भी यहाँ शायद नहीं है !
—— प्रसिद्ध कवि दुष्यंत कुमार
( संकलित )
—— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !