गहनों में गूथा जाऊँ ,
चाह नहीं प्रेमी— माला में बिध
प्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढू भाग्य पर इठलाऊँ ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली ,
उस पथ पर देना तुम फेंक ,
मातृ— भूमि पर शीश चढ़ाने ,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक !!
—— प्रसिद्ध कवि माखनलाल चतुर्वेदी
( संकलित )
——- राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !