जो मिला मुसाफिर वो रास्ते बदल डाले ,
दो क़दम पे थी मंज़िल फ़ासले बदल डाले !
आसमां को छूने की कूवतें जो रखता था ,
आज है वो बिखरा सा हौंसले बदल डाले !
शान से चलता था कोई शाह की तरह ,
आ गया हूँ दर दर पे काफिले बदल डाले !
फूल बनके वो हमको दे गया चुभन इतनी ,
काँटों से है दोस्ती अब आसरे बदल डाले !
इश्क़ ही खुदा है सुन के थी आरज़ू आई ,
खूब तुम खुदा निकले वाक़िये बदल डाले !!
( संकलित )
——- राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !