” नये मौसम को क्या होने लगा है “

नये  मौसम  को  क्या  होने  लगा  है  ,

कि  मिट्टी  में  क्या  बोने   लगा    है   !

कोई  कीमत  नहीं  थी  जिस  की  यारों   ,

अब  उसका  मोल   भी  होने  लगा   है   !

बहुत  मुश्किल  है  अब  उस  को  जगाना  ,

वो    आँख    खोलकर    सोने  लगा  है    !

जहाँ  होता  नहीं  था  कुछ  भी  कल   तक  ,

वहाँ  भी  कुछ  न  कुछ   होने   लगा   है     !

 

हवा  का  क़द   कोई  किस  तरह  नापे  ,

जिसे  देखो  वही  कोने    लगा      है    !

अभी  तो  पाँव  में   कांटे   ही  चुभे   हैं  ,

अभी   से  हौसला    खोने    लगा     है    !

नया  चलन  बिखर  जायेगा    एक  दिन  ,

नहीं   होना  था    जो   होने    लगा    है    !

( संकलित   )

 

———  राम  कुमार  दीक्षित  ,   पत्रकार   !

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *