बस एक चुप सी लगी है, उदासी नहीं !
कहीं पे साँस रुकी है ,
नहीं उदास नहीं , बस एक चुप सी लगी है !!
कोई अनोखी नहीं , ऐसी ज़िंदगी लेकिन ,
खूब न हो , मिली जो खूब मिली है !
नहीं उदास नहीं , बस एक चुप सी लगी है !!
सहर भी ये रात भी , दोपहर भी मिली लेकिन ,
हमीं ने शाम चुनी, हमीं ने शाम चुनी है !
नहीं उदास नहीं , बस एक चुप सी लगी है !
वो दास्तां जो , हमने कही भी , हमने लिखी !
आज वो ख़ुद से सुनी है !
नहीं उदास नहीं , बस एक चुप सी लगी है !
——– प्रसिद्ध गीतकार गुलज़ार
( संकलित )
——– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !