ऐसा कोई ज़िंदगी से वादा तो नहीं था
तेरे बिना जीने का इरादा तो नहीं था
तेरे लिए रातों में चांदनी उगाई थी
क्यारियों में खुशबू की रौशनी लगाई थी
जाने कहाँ टूटी है डोर मेरे ख्वाब की
ख्वाब से जागेंगे सोचा तो नहीं था !
शामियाने शामों के रोज ही सजाये थे
कितनी उम्मीदों के मेहमां बुलाये थे
आ के दरवाजे से लौट गए हो
यूँ भी कोई आयेगा सोचा तो नहीं था !
——- प्रसिद्ध कवि एवं गीतकार गुलज़ार
( संकलित )
——— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !