” मधुर , तुम इतना ही कर दो “

मधुर    तुम    इतना    ही  कर   दो   !

 

यदि   यह   कहते   हो   मैं   गाऊँ  ,

जलकर  भी   आनंद     मनाऊँ   ,

इस  मिट्टी  के  पंजर  में  मत  छोटा— सा   उर  दो   !

 

मधुर     तुम   इतना   ही    कर  दो  !

 

तेरी   मधुशाला   के   भीतर  ,

मैं  ही   खाली   प्याला   लेकर  ,

बैठा   हूँ   लज्जा   से   दबकर  ,

मैं  पी  लूँ  ,  मधु  न  सही  , इसमें  विष  भर  दो  !

 

मधुर  ,  तुम  इतना   ही   कर   दो   !

——-  प्रसिद्ध कवि  गोपालदास  नीरज

( संकलित  )

 

——-   राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार   !

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