” ऐ ज़िंदगी तेरा सबक “

ऐ   ज़िंदगी  तेरा  सबक   क्या   लाजवाब  है  ,

आत्मा  की  खातिर गमों का  दौर भी जरूरी  है  !

 

इस  भाग— दौड़ से  क्या  हासिल हुआ अब  तक

इसका हिसाब  करने  को  , इक ठौर  भी  जरूरी  है  !

 

जिस   राह  पर  चले  थे  मंज़िल  को  ढूँढने  ,

उसका मुकाम  क्या है  , यह  गौर  भी ज़रूरी  है  !

 

बस इक  प्यार  के  सहारे  जीने चले  थे  हम,

अब  जाके समझ आया  , कुछ और भी ज़रूरी है  !

 

——-  राम  कुमार  दीक्षित, पत्रकार  !

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