” प्रेम का स्पर्श “

हे  भुवन  ,

मैंने  जब  तक

तुम्हें प्यार नहीं किया  था

तब  तक  तुम्हारा  प्रकाश

खोज– खोजकर( भी)  अपना सारा धन नहीं पा सका था

 

उस समय  तक

समूचा  आकाश

हाथ में अपना दीप लिए हर सुनेपन में बाट जोह रहा था

मेरा प्रेम गान गाता हुआ आया  ,

( फिर न जाने) क्या कानाफूसी हुई

उसने डाल दी तुम्हारे  गले में

अपने गले की माला  !

 

मुग्ध  नयनों से  हंसकर

उसने तुम्हें

चुपचाप कुछ  दे  दिया,

( ऐसा  कुछ  ) जो तुम्हारे गोपन हृदय– पट  पर

चिरकाल तक बना रहेगा  !!

——  प्रसिद्ध कवि रविंद्रनाथ टैगोर

(  संकलित  )

 

——–  राम कुमार दीक्षित,  पत्रकार   !

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