जगती पर संसृति का बंधन ,
संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधों में रहना होगा !
साथी सब कुछ सहना होगा !!
हम क्या हैं जगती के सर में ,
जगती क्या, संसृति सागर में ,
एक प्रबल धारा में हमको लघु तिनके– सा बहना होगा !
साथी, सब कुछ सहना होगा !
आओ अपनी लघुता जानें
अपनी निर्बलता पहचानें ,
जैसे जग रहता आया है उसी तरह से रहना होगा !
साथी सब कुछ सहना होगा !
——- प्रसिद्ध कवि हरिबंश राय बच्चन
( संकलित )
—— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !