प्रेम– पुलकमय जन– जन हो
नव — स्फूर्ति भर दे नव — चेतन
टूट पड़े जड़ता के बंधन
शुद्ध स्वतंत्र वायुमंडल में
निर्मल तन , निर्भय मन हो
प्रेम– पुलकमय जन– जन हो
नूतन का अभिनंदन हो
प्रति अंतर हो पुलकित — हुलसित
प्रेम दिये जल उठें सुवासित
जीवन का क्षण– क्षण हो ज्योतित
शिवता का आराधन हो
प्रेम पुलकमय प्रति जन हो
नूतन का अभिनंदन हो !
—– प्रसिद्ध कवि फणीश्वरनाथ रेणु
( संकलित )
——– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !