” बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन “

मानुष हौं तो वही रसखानि  ,

बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन   !

जौ  पसु हौं तो कहा  बस  मेरो  ,

चरौं  नित नन्द की धेनु मन्झारन   !

पाहन हौं तो वही गिरि  को  ,

जो कियो हरिछत्र पुरंदर  धारन   !

जौ खग हौ तो  बसेरो करौं   ,

मिलि  कालिंदी  कूल  कदंब  की  डारन    !

———  भक्त कवि  रसखान

( संकलित    )

 

——-  राम  कुमार  दीक्षित , पत्रकार  , पुणे , महारास्ट्र  !

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